क्या अक्षय कुमार का प्रधानमंत्री मोदी का इंटरव्यू पेड न्यूज़ नहीं है ?

-रवीश कुमार

अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लिया। लेकिन इंटरव्यू के लिए कैमरा किसका था? तकनीकि सहयोग किसका था? क्या इंंटरव्यू के अंत में किसी प्रोडक्शन कंपनी का क्रेडिट रोल आपने देखा? इन सवालों पर बात नहीं हो रही है। क्योंकि इन पर बात होगी जो जवाबदेही तय होगी। सोचिए ग़ैर राजनीति के नाम आप दर्शकों के भरोसे के साथ इतनी बड़ी राजनीति हो गई।

क्विंट वेबसाइट ने सूत्रों के आधार पर लिखा है कि अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी के गैर- राजनीतिक इंटरव्यू की तैयारी ज़ी न्यूज़ की संपादीयक टीम ने कराई। ज़ी की टीम ने शूट किया और पोस्ट प्रोडक्शन किया यानी एडिटिंग की।

जब सामग्री तैयार हो गई तो न्यूज़ एजेंसी ANI ने जारी कर दिया जिसे सारे चैनलों पर दिखाय गया। क्विंट की स्टोरी में ज़ी और ANI का पक्ष नहीं है।

यह सीधा सीधा पोलिटिकल प्रोपेगैंडा है। ज़ी न्यूज़ के तैयार कंटेंट को ANI से जारी करवा कर सारे चैनलों पर चलवाया गया। क्या सारे चैनलों को नहीं बताना था कि यह कटेंट किसका है? क्या एएनआई का है जो इसे जारी कर रहा है?

अगर आप मीडिया के इतिहास से वाक़िफ़ हैं तो इन बातों से सतर्क हो जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी के घोर समर्थक हैं. तब तो आपको और भी सतर्क होना चाहिए। क्या आप मोदी का सपोर्ट इसलिए करते हैं कि मीडिया आपकी आंखों में धूल झोंके। सपोर्ट आप करते हैं, मीडिया क्यों खेल करता है।

इस देश में दूरदर्शन की काबिल टीम है। उसने क्यों नहीं शूट किया और एडिट किया? प्रधानमंत्री को सरकारी संस्थानों में भरोसा नहीं है? वैसे एक पेशेवर के नाते बताना चाहूंगा कि अक्षय कुमार का बाल नरेंद्र का वीडियो वर्जन बहुत ही ख़राब शूट हुआ था। प्रधानमंत्री जहां बैठे हैं, उनके पीछे शीशे में टेक्निकल स्टाफ की छाया आ रही थी। बीच में कभी किसी का सर तो कभी किसी का हाथ आ जाता था। इससे अच्छा तो दूरदर्शन के कैमरामैन शूट कर देते।

कोई पूछने वाला नहीं है। विपक्ष में नैतिक बल नहीं है। डरपोक और कामचोर विपक्ष है। इस इंटरव्यू से संबंधित मूल सवाल उठने चाहिए थे।

क्या वाकई इसे ज़ी न्यूज़ की टीम ने शूट किया और इसकी एडिटिंग की? तो फिर यह ज़ी का प्रोग्राम हुआ। फिर यह बात क्यों नहीं ज़ाहिर की गई। क्या अंधेरे में रखकर सारे चैनलों को ज़ी न्यूज़ के बनाए कटेंट को दिखाने के लिए मजबूर किया गया? क्या अब आगे भी सबको ज़ी न्यूज़ ही कटेंट सप्लाई करेगा?

क्या यह इंटरव्यू पेड न्यूज़ के दायरे में नहीं आता है? ज़ी न्यूज़ के कई बिजनेस हैं। वह क्यों सारे चैनलों के लिए फ्री में कटेंट तैयार करेगा? क्या चुनाव बाद इसका लाभ मिलेगा?

अक्षय कुमार अपनी टीम लेकर आते तो कोई बात नहीं थी। क्विंट की साइट पर ज़ी न्यूज़ की टीम की तस्वीर है। एक प्राइवेट चैनल के साथ मिलकर शूटिंग प्लान किया गया और एक दूसरी एजेंसी से सारे चैनलों के लिए जारी किया गया मेरे हिसाब से यह अपराध है। नैतिक अपराध है।

भारत के प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि यह इंटरव्यू किसका था। ज़ी न्यूज़ का या एएनआई का। क्या सारे चैनलों ने एएनआई से पूछा कि इसे किसने शूट किया है? क्या ज़ी न्यूज़ प्रोपेगैंडा शूट कर, एडिट कर, सारे चैनलों को बांटेगा और सारे चैनल इसे चलाएंगे? क्या चैनलों में इतकने भोले लोग काम करते हैं?

चुनाव आयोग स्वायत्त और निर्भिक संस्था की तरह काम नहीं कर रहा है। इस आयोग से उम्मीद बेकार है। वर्ना पेड न्यूज़ का यह मामला बनता है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और संपादकों का समूह चुप है। निंदा ही करता है। ब्राडकास्ट एसोसिएशन का संगठन(NBSA) है।
उससे शिकायत कीजिए। वहां भी कुछ नहीं होगा।

भारत की बड़ी समाचार एजेंसी एएनआई(ANI) का थॉम्पसन रॉयटर से करार है। सेना के अलग-अलग अंगों से रिटायर हुए अफसरों ने रॉयटर को पत्र लिखा है। बताया है कि उनकी भारतीय सहयोगी ANI ने सेना के राजनीतिकरण के खिलाफ़ बोलने की उनकी मंशा को बदनाम करने का प्रयास किया है। उन्होने लिखा है कि हम मानते हैं कि ANI ने भारत की सत्ताधारी पार्टी की तरफ से उनके बयानों को गलत संदर्भ में पेश किया है। ANI ने इन आरोपों को आधारहीन बताया है।

12 अप्रैल को 150 से अधिक सेना के अफसरों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा था। कहा था कि लोकसभा के चुनाव में सेना का राजनीतिकरण हो रहा है। उस दिन ANI ने कहा कि इस पर हस्ताक्षर करने वाे दो पूर्व अफसर पूर्व सेना ध्यक्ष जनरल सुनीथ फ्रांसिस रोड्रिग्स और पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एन सी सूरी ने दस्तख़त से इंकार किया है और कहा है कि उनकी सहमति नहीं ली गई। यह ख़बर हर छपी है और दिखाई गई।

थाम्पसन से पूछा गया है कि वह अपने साझीदार के संपादकीय आचरणों का मूल्यांकन कैसे करेंगे। स्क्रोल पर इस न्यूज़ को विस्तार से पढ़ सकते हैं।

मीडिया में जो हो रहा है उसे आप भाजपा समर्थक या विरोधी के नाते खारिज मत कीजिए। मीडिया मोदी को चुनाव जीतवाने में ही मदद नहीं कर रहा बल्कि चुनाव के बाद आपकी हार का इंतज़ाम कर रहा है। मीडिया और अपने राजनीतिक समर्थन को अलग रखिए। आपकी आंखों के सामने जो बर्बाद हो रहा है, उस चमन को आखिरी बार ठीक से देख लो यारों। यह इतना भी मुश्किल सवाल नहीं कि आप पूछ न सकें। आपका यह डर भारत की जनता की हार है।

(लेखक NDTV मध्ये वरिष्ठ पत्रकार आहेत)

Previous articleउचललेस तू मीठ मूठभर
Next articleविद्वत्तेविरुद्ध मोदी सरकारने पुकारलेले युद्ध
अविनाश दुधे - मराठी पत्रकारितेतील एक आघाडीचे नाव . लोकमत , तरुण भारत , दैनिक पुण्यनगरी आदी दैनिकात जिल्हा वार्ताहर ते संपादक पदापर्यंतचा प्रवास . साप्ताहिक 'चित्रलेखा' चे सहा वर्ष विदर्भ ब्युरो चीफ . रोखठोक व विषयाला थेट भिडणारी लेखनशैली, आसारामबापूपासून भैय्यू महाराजांपर्यंत अनेकांच्या कार्यपद्धतीवर थेट प्रहार करणारा पत्रकार . अनेक ढोंगी बुवा , महाराज व राजकारण्यांचा भांडाफोड . 'आमदार सौभाग्यवती' आणि 'मीडिया वॉच' ही पुस्तके प्रकाशित. अनेक प्रतिष्ठित पुरस्काराचे मानकरी. सध्या 'मीडिया वॉच' अनियतकालिक , दिवाळी अंक व वेब पोर्टलचे संपादक.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here