..तो यक़ीन मानिए आप जी रहे हैं! 

-शैलेश पांडे

 

एकांत की अस्तव्यस्त लेन-देन

यदि आप जी रहे हैं,

जैसे कि आप जीते आए हैं,

या फिर जैसे भी जीते जाएंगे…

 

थोड़ी-बहूत चालाकियों के साथ क्यों न हो…

यक़ीन मानिए…

अगर आपने अपना-पराया सोचे बिना, किसी की समय पर मदद कर दी हैं;

अगर आपने अपनी राह चलते-चलते… किसी को हाथ देकर उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा दिया हैं;

..तो यक़ीन मानिए आप जी रहे हैं!

अगर आपने उपजीविका की व्यस्तता के चलते भी…

घर/परिवार और मित्रों को समय दिया हो;

सुखदुःख में उनका खयाल रखा हो; व्यस्तता का कोई बहाना ढूंढकर खुद को दूर न रखा हो;

अगर आपने किसी अपरिचित-विचित्र को अपना समय और सुनवाई देकर शांत कर दिया हैं;

..यक़ीन मानिए आप जी रहे हैं!

अगर आपने अपने प्रिय व्यक्ति का घंटो और बार-बार बिना थके इंतजार किया हैं;

अगर आपने हर बार गुस्से पर काबू पाकर प्यार का इज़हार कर दिया हैं;

अगर आपके जेहन में किसी ने आपके लिये लिखी/कही अच्छी बात हमेशा कायम हैं;

अगर आपने कभी किसी की हिफाज़त की हैं, जब उसे सख्त जरूरत थी;

अगर आपने किसी को उसके ‘स्व’से परिचित करा कर हिम्मत दी हैं;

अगर आपने चाहे-अनचाहे किसी की रीढ़ की हड्डी सरल कर दी हैं…

चाहे इन सब में अपनापन थोड़ा ज्यादा बह गया हो… तब भी…

…यक़ीन मानिए आप जी रहे हैं!

अगर आपने दुनिया के अभावों के चलते भी खुश रहना सीख लिया हैं;

यदि आप खुद के अलावा किसी की स्पर्धा में नहीं हैं;

यदि आपके शब्दकोश में ‘बोरियत’ के लिये जगह नहीं हैं; चूंकि आप ‘व्यस्त’ हैं;

… और फिर भी आप किसी अपने को, अपना समय,  उसकी जरूरत के अनुसार देते हैं… देते रहते हैं;

…यक़ीन मानिए आप ‘व्यस्त’ नहीं ‘मस्त’ हैं …

आपने समझ लिया हैं फर्क ‘व्यस्त’ और ‘अस्तव्यस्त’ में…

और आप जी रहे हैं!

अगर आपने ये समझ लिया हो कि रिश्ता व्यवहार नहीं होता लेकिन रिश्ते लेन-देन के मोहताज होते हैं;

और आपने सीख लिया हो देना और देते रहने का मतलब…

चाहे समय हो या कुछ और जो आपके पास हो… ;

यक़ीन मानिये आप कई गुना वापस पाएँगे…

और मस्ती में जीते चले जायेंगे…

जब भी आपने किसी को बिना मतलब मदद कर दी होगी,

हर बार आपके नाम कोई लॉटरी लग रही होगी…

उसका अंबार एक दिन आपको मिलना तय हैं;

…क्योंकि आप जी रहे हैं!

बिना वजह मदद करना सबसे बड़ा पुण्य,

और अपना समय अपनों की जरूरत के वक्त देना सबसे बड़ा गिफ्ट… ///

आपका ‘एकांत’ जब बीते दिनों की और भविष्य की   ‘व्यस्तता’ की गहराई में उतरे…

तो पाइयेगा कि…

 

व्यस्तता और उसके लिए दिए जाने वाले कारण हर बार नहीं…

लेकिन ज्यादा से ज्यादा अमानुष होते हैं…

वो छल/कपट भरे होते हैं,

और अन्यायकारी भी !

व्यस्तता आखिरकार आपको ‘अकेला’ बनाती हैं; रहने और सहने के लिये भी;

लोभ सारे छेद फोड़कर बाहर आता हैं और आप अकेले होते हो सहने के लिए;

उपभोग की अंधी दौड़ आपको एक ना एक दिन भोगशून्यता या भोग दुर्बलता उपहार में देगी; अकेलापन साथ में-अलग से;

स्वार्थ जब मर्यादा से बाहर जाए तो पीढियों तक बदबू होगी… ;

अगर ‘एकांत’ ने आपको इन सब चीजों के साथ ये भी समझा दिया हैं कि…

चरित्र की समाज रीति एक बहूत बड़ा ढोंग हैं/

जिंदगी अन्याय के बिना नहीं होती लेकिन अन्याय का किसी भी हालत में समर्थन नहीं हो सकता/

जलन नहीं लगन आपको आगे बढ़ा सकती हैं/

जिंदगी में कम से एक रिश्ता जान पर खेलकर निभाने का जज़्बा आपको शेर दिल बनाता हैं/

और…

कोशिश करके हारना जीत के बराबर हैं…

तो समझ जाइये कि आप जी रहे हैं…

जैसे कि आप जीते आ रहें हैं….

(कवी ‘तरुण भारत’ च्या डिजीटल आवृत्तीचे संपादक आहेत)

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अविनाश दुधे - मराठी पत्रकारितेतील एक आघाडीचे नाव . लोकमत , तरुण भारत , दैनिक पुण्यनगरी आदी दैनिकात जिल्हा वार्ताहर ते संपादक पदापर्यंतचा प्रवास . साप्ताहिक 'चित्रलेखा' चे सहा वर्ष विदर्भ ब्युरो चीफ . रोखठोक व विषयाला थेट भिडणारी लेखनशैली, आसारामबापूपासून भैय्यू महाराजांपर्यंत अनेकांच्या कार्यपद्धतीवर थेट प्रहार करणारा पत्रकार . अनेक ढोंगी बुवा , महाराज व राजकारण्यांचा भांडाफोड . 'आमदार सौभाग्यवती' आणि 'मीडिया वॉच' ही पुस्तके प्रकाशित. अनेक प्रतिष्ठित पुरस्काराचे मानकरी. सध्या 'मीडिया वॉच' अनियतकालिक , दिवाळी अंक व वेब पोर्टलचे संपादक.